Tuesday, August 3, 2010

अब्दुल बिस्मिल्लाह की कविताएँ



















|| चूज़े ||

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
अपने दरबे की सीमा में
बैठती है, खड़ी होती है
और उन्हें खेलने देती है

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
कूड़े में, गोबर में
और राख में उनके लिए
महीन दाने तलाशती है

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
बिल्ली के आक्रमण से
उन्हें आगाह करती है

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
सिल पर, चौके पर
और दहलीज़ पर
चोंच तेज करने का
सलीक़ा बताती है

और चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
उन्हें खूंखार दुनिया सौंपकर
दावत बन जाती है

चूज़े देखते हैं
कि उनकी चोंच
उन्हें शोरबा बनने से
बचा सकती है या नहीं

चूज़े
गमले की हरी पत्ती पर
अपनी चोंच आज़माते हैं

पत्ती टूट जाती है

चूज़े सोचते हैं
दुनिया क्या
इस पत्ती से ज्यादा सख्त होगी ?



















|| खेल-खेल में ||

हाँ, ऐसा होता है
खेल-खेल में
रोज़ ही ऐसा होता है

रोज़ ही वे
दरोगा बनते हैं
रोज़ ही वे
सिपाही बनते हैं
रोज़ ही तुम
चोर बनते हो

रोज़ ही वे
कन्हैया बनते हैं
रोज़ ही तुम
पालकी बनते हो
रोज़ ही वे
राजा बनते हैं
रोज़ ही तुम
रैयत बनते हो

हाँ, ऐसा रोज़ ही होता है
रोज़ ही उनका गुड्डा होता है
रोज़ ही तुम्हारी गुड़िया होती है

रोज़ ही वे
अपना गुड्डा सजाये आते हैं
और तुम्हारी
सुघर-सलोनी गुड़िया ले जाते हैं

हाँ, ऐसा रोज़ ही होता है
कि उनका गटापार्चा का बबुआ टूटता है
और वे चले जाते हैं
रोनी सूरत बनाये
तब तुम उनके बबुआ को
दफ़न करते हो
और तालियां बजाते हो

खेल-खेल में
ऐसा तो रोज़ ही होता है



















|| कागज़ ||

काग़ज़ का यह छोटा-सा टुकड़ा
अपने दिल पर
दु:ख़ निख सकता है किसी का
यह ख़त लिख सकता है
किसी के नाम
अपने सीने पर

अपने चेहरे पर
फ़ैसला लिख सकता है यह
कैसा भी

काग़ज़ का यह छोटा-सा टुकड़ा
अपनी हथेली पर
पूरी की पूरी तबदीली
लिख सकता है















|| पांच पानियों का देश ||

पानी का नाम मत लो यहाँ
कोई सुन लेगा
तो गज़ब हो जाएगा

जी नहीं
अब तो उन नदियों के
निशान भी नहीं रहे यहां
उन नदियों का नाम मत लो
कोई सुन लेगा तो गज़ब हो जाएगा

जी नहीं
वे सूखी नहीं घाम में
वे लुप्त नहीं हुईं पाताल में
उन्हें चुरा ले गया कोई परदेसी
अपनी पोली छड़ियों में भरकर
उस परदेसी का नाम मत पूछो
कोई सुन लेगा तो गज़ब हो जाएगा

जी नहीं
यहाँ हथियार नहीं चले
यहाँ नहीं हुई कोई बग़ावत
यहाँ सिर्फ़ बदमस्त हो गये
पानी के बिना
कुछ हाथी, कुछ घोड़े ओर कुछ परिन्दे

आगे क्या हुआ
कैसे बताया जाए
कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा

जी नहीं
सूरज का रंग
यहाँ भी पहले
लाल ही होता था
जब वह पांच-पांच पानियों के भीतर से
नहाकर निकलता था
अब कितना सफ़ेद हो गया है इसका चेहरा
कि जैसे काग़ज़ का कोई गोल टुकड़ा
चिपका दिया गया हो आकाश के सीने पर

मत पूछो
काग़ज़ में लिखी इबारत की व्याख्या
कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा

हवा में
बनी हुई है हरारत
लगातार
और वे चुप हैं
सड़क पर सड़ रहें हैं
खून के थक्के
और वे चुप हैं
खिड़कियों में
खुली हुई हैं
सहमी, डरी, उदास पुतलियां
और वे चुप हैं

वे कौन हैं ?
उनका नाम क्या है ?
मत पूछो, मत पूछो, बन्धु
वर्ना कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा

[ कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कविताएँ भी लिखीं और उनकी लिखी कविताएँ चर्चित भी हुईं तथा पुरस्कृत भी | उनकी अनेक रचनाएँ मराठी, मलयालम, बंगला, उर्दू, अंग्रेज़ी तथा जापानी में अनुदित हुई हैं | यहाँ दी गई कविताओं के साथ के चित्र इंदौर के युवा चित्रकार प्रेमेन्द्र सिंह गौड़ की पेंटिंग्स के हैं | मध्य प्रदेश के शाजापुर में 1978 में जन्मे और इंदौर के गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन ऑर्ट से एमएफए करने वाले प्रेमेन्द्र ने इंदौर, दिल्ली व मुंबई में अपनी पेंटिंग्स की एकल प्रदर्शनियाँ की हैं तथा धार, उज्जैन, इंदौर, जबलपुर, दिल्ली, मुंबई, बंगलौर में आयोजित समूह प्रदर्शनियों में भी अपने काम को प्रदर्शित किया है | ]

2 comments:

  1. अब्दुल बिस्मिल्लाह की कविताओं में अपने आसपास का जीवन और उसकी स्थितियों का साक्षात्कार होता है | प्रेमेन्द्र सिंह गौड़ की पेंटिंग्स इस साक्षात्कार को संवेदनात्मक पहचान देती हैं |

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