Monday, July 19, 2010

दीपशिखा की चार कविताएँ



















|| एक ||

फूलों से ज़्यादा काँटों पे चलने में मज़ा आता है
तप कर ही तो सोने में और निखार आता है

कोई साथ नहीं, कोई बात नहीं
अकेले भी रौब से जीया जाता है

फूलों से ज़्यादा ......

कोई जा के उनसे कह दे डरपोक नहीं हैं हम
चुप रहकर भी लड़ने का मज़ा लिया जाता है

फूलों से ज़्यादा .....

हार के भी जीतने का दम रखते हैं हम
गर इरादें हों फौलाद के, दुनिया को जीता जाता है

आज साथ नहीं है समय हमारे तो क्या
जो समय साथ मिला ले, उसे ही सिकंदर कहा जाता है

फूलों से ज़्यादा ......

सितारों से आगे इक जहाँ और भी है
देखने वाले को ही 'ख़ुदा' कहा जाता है

फूलों से ज़्यादा काँटों पे चलने में मज़ा आता है
तप कर ही तो सोने में और निखार आता है
तप कर ही तो सोने में और निखार आता है



















|| दो ||

रहमों कर्म की इनायत हमपे भी फरमाईए
अब इतने क़रीब आकर दूर यूं ना जाईए

रहमों कर्म की इनायत .......

दिल टूट-टूट जाता है जब तू निगाह चुराता है
ओ तोड़ने वाले ये दिल अब जोड़ते भी जाईए

रहमों कर्म की इनायत .......

माना के काबिल हम नहीं हैं आपके
बस चाहते हैं बहुत आपको, बाकी सब भूल जाईए

रहमों कर्म की इनायत .......

जी ना सकेंगे बिन तेरे, आजमा कर कभी भी देख ले
सालों हुए गम सहते हुए, अब खुशी भी देने आईए

रहमों कर्म की इनायत ........

सब पूछते हैं हाल क्या बना लिया है अपना
हमको भी हक़ है सजने का, वो हक़ तो अब लौटाइए

रहमों कर्म की इनायत .......

बैचेन बहुत रह लिया, तड़प लिया है बहुत
ओ चैन छीनने वाले, कुछ सुकूँ भी देते जाइए

रहमों कर्म की इनायत हमपे भी फरमाईए
अब इतने क़रीब आकर दूर यूं ना जाईए
अब इतने क़रीब आकर दूर यूं ना जाईए


















|| तीन ||

राह चलते कभी मिल जाते हैं वो
जी करता है वो मंज़र कभी खत्म न हो

पुराने सूखे वृक्ष भी हो जाते हैं हरे-भरे
गर्म तपती हवाएँ भी देती हैं ठंडक खड़े

महसूस यूं होता है मुस्कुरा रही है हर नज़र
दुश्मन भी लगते हैं गहरे दोस्त हमें इधर

रस्ते के पत्थर भी मलमल बन जाते हैं
धूल मिट्टी रेत के कण भी झिलमिलाते हैं

नल से बहता पानी भी अमृत सा लगता है
गुजरता हुआ हर शख्स अपना सा लगता है

क़दम उठाते हैं तो फूल बरसाता है आस्मां
मानो ये सारी कायनात है हम पर मेहरबाँ

अब क्या तारीफ़ करूँ मैं अपने हुज़ूर की
खुशियों से वो दिन भर जाता है

जब राह चलते कभी मिल जाते हैं वो
जी करता है वो मंज़र कभी खत्म न हो
जी करता है वो मंज़र कभी खत्म न हो



















|| चार ||

सफ़ेद लिबास, दमकता चेहरा
दीवाना बना देता है वो तेरा नूर सुनहरा

शरबत से मीठी तेरी बोली
मेरी सूनी शामों को भी बना देती है होली

सारे इत्रों से बेहतर वो महक है यार की
मेरे पूरे घर मैं फैली है, ऐसी चाहत है सरकार की

सुकून पहुँचाती है दिल को तेरे चलने की आहट
हजारों गम भुला देती है सिर्फ़ तेरी एक मुस्कुराहट

सागर से जो गहरा ये दिल है तेरा
मेरी हर अंधेरी रात का वो ही है सवेरा

सबसे ज़्यादा प्यारी है वो सादगी तेरी
सिर्फ़ तेरा ही नाम लेना अब है बन्दगी मेरी

सिर्फ़ तेरा ही नाम लेना अब है बन्दगी मेरी

क्योंकि क्योंकि वो सफ़ेद लिबास वो दमकता चेहरा
दीवाना बना देता है तेरा नूर सुनहरा

[ दीपशिखा मूलतः एक चित्रकार हैं और चंडीगढ़ में इंड्सइंड बैंक की कलादीर्घा में अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनी कर चुकी हैं | उनकी पेंटिंग्स के लिये 'सेंटर फॉर ऑर्ट एंड कल्चर' ने उन्हें 'पिकासो सम्मान' से नवाज़ा है | पिछले कुछ समय से उन्होंने कविता में भी दिलचस्पी लेना शुरू किया है | हमारे बहुत आग्रह पर उन्होंने हाल ही में लिखी अपनी ये कविताएँ उपलब्ध करवाईं | दीपशिखा की कविताओं के साथ प्रकाशित चित्र प्रख्यात चित्रकार मंजीत बावा की पेंटिंग्स के हैं | ]

4 comments:

  1. सतीश कौशिकJuly 20, 2010 at 5:35 AM

    दीपशिखा का कविता की दुनिया में स्वागत है | कच्चे-पक्के मन की उनकी इन कविताओं का प्रथम प्रस्थान मानवीय संवेदन से है और उस विडंबना से भी है, जो इच्छाओं व आकांक्षाओं से उपजकर दुःख व निराशा के शिल्प में बदल तो जाती है पर उनका दमन नहीं छोड़ती है |

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  2. गौरव जैनJuly 20, 2010 at 8:12 PM

    समकालीन कविता के परिदृश्य में दीपशिखा की कविताएँ एक आश्चर्य की तरह लगी हैं, जो मन की अनुपस्थित भूमियों तक जाती हैं | अपने मनोभावों को उन्होंने सेंसर नहीं किया है, और मन के भाव कविता में न सिर्फ़ खुलकर अभिव्यक्त हुए हैं, बल्कि उन्होंने रचनाकार की सम्पूर्ण कहन पद्वति पर भी असर डाला है | दीपशिखा जी को बहुत शुभकामनाएँ |

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  3. प्रतिभा माथुरJuly 21, 2010 at 11:59 PM

    दीपशिखा की कविताएँ मन को छू गईं |

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  4. निर्मल आनंदJuly 22, 2010 at 5:27 PM

    दीपशिखा की कविताओं में मन की अंतर्बाह्य मनःस्थिति को जिस गहरी संवेदना के साथ अभिव्यक्त किया गया है, उससे एक रचनाकार के रूप में उनकी सामर्थ्य का संकेत मिलता है | कविता के गठन में हालाँकि उन्हें अभी बहुत मेहनत और प्रशिक्षण की आवश्यकता है | कविता में दिलचस्पी लेना शुरू करने के लिये दीपशिखा को बधाई और उनके लिए शुभकामनाएँ |

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