Thursday, June 30, 2011

प्रेमशंकर शुक्ल की कविताएँ



















|| काग़ज़ ||

काग़ज़ जिसमें स्पंदित है
वनस्पतियों की आत्मा
आकाश जितना सुंदर है

जैसे शब्दों के लिए है आकाश
काग़ज़ भी वैसे ही

स्याही से उपट रहा जो अक्षरों का आकार
काग़ज़ पूरी तन्मयता से
रहा सँवार

जीवन की आवाज़ों-आहटों, रंगत
और रोशनी से भरपूर इबारतें
काग़ज़ पर बिखरी हैं चहुँओर
धरती में घास की तरह

और उन्हें धरती की तरह काग़ज़
कर रहा फलीभूत |



















|| नीली स्याही ||

नीली स्याही में
भीगे हुए हैं
कितने रंग के दुःख
कितनी उदासी-टूटन-हताशा,
पीड़ा और प्रेम
नीली स्याही में है
गुंजायमान
(जिसका कि सिर्फ़ नीला रंग नहीं है)

पंक्तित इस नीलाभ में
शामिल है
कितने तरह की चीज़ों की आवाज़
और चुप्पी

आखिर
नीला ही कितना बचा होगा
नीली स्याही में
जब उड़-सिकुड़ रही हो रंगत
जीवन से लगातार

[प्रेमशंकर शुक्ल की कविताओं के साथ दिए गए चित्र विक्रम नायक की पेंटिंग्स के हैं | बहुमुखी प्रतिभा के धनी विक्रम नाटकों व टेलीविजन धारावाहिकों में भी काम कर चुके हैं और एक चित्रकार के रूप में अपनी पेंटिंग्स देश-विदेश में प्रदर्शित कर चुके हैं |]