Monday, July 26, 2010
नरेन्द्र जैन की 'बंगलूर डायरी'
|| बल्लाशाह में सुबह ||
ईंट के भट्टों से निरंतर उठाता धुआँ
कुछ कत्थई, कुछ सुर्ख़ ईंटे
धुँध की गिरफ्त में स्तब्ध जंगल
विदिशा से सात सौ मील दूर
धान के खेत में खड़ी ये तीन सायकिलें
एक निरंतर जलता अलाव जो
नियामत है मजूरों के लिए
ऐ मौला
इस परिदृश्य का निर्माता तू हो ही नहीं सकता
आ और देख ये हाथ
जो कुछ गढ़ रहे निरंतर
जिनकी त्वचा इतनी कड़ी
कि
हुई जाती हथेलियों की रेखाएं छिन्न भिन्न
|| सिरपुरकाग़ज़नगर से गुज़रते ||
धान के खेत में
औंधा पड़ा सूरज
लुगदी के विशालकाय दलदल से बाहर
आता
खामोश काग़ज़
अभी ख़ामोश है क्षितिज तक फंसा सूखता
काग़ज़
इसी काग़ज़ पर लिखे जायेंगे एक दिन
फ़ैसले, तकरीरें, जिरहें, बहसें, आजीवन कारा
किसी को मृत्युदंड
और चंद कविताएं
|| सिकंदराबाद में पतंगें ||
जितने रंग हो सकते हैं सृष्टि में
और जिन रंगों कि खोज की जानी अभी
बाकी है
उन सारे रंगों को लिये
असंख्य पतंगों ने
कर दिया है आच्छादित सिकंदराबाद का
आसमान
रंगबिरंगी लहरों का एक ज्वार जैसे उफनता है
और तेजी से नीचे उतरता है
ये सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की पूर्वसंध्या है
सिकंदराबाद के पतंगसाज़ व्यस्त हैं
और पतंगबाज़ देख रहे सिर्फ आसमान
की ओर
सबसे खुश है यह लड़का
जिसने काट दी है किसी की डोर
और हल्की सी उदासी उसके इर्दगिर्द है
जिसकी पतंग कटकर अब धरती की ओर
चली आ रही है
|| जामे उस्मानिया का कब्रिस्तान ||
जामे उस्मानिया के कब्रिस्तान में
हर क़ब्र के सामने
एक घर का भी स्मारक है
यह घर इतना छोटा है
की इसे हथेली पर रखा जा सकता है
दिवंगत ने जिस लालसा से बनाया
होगा घर
उसके इंतकाल के बाद घर भी जैसे
दफ़न हुआ
जामे उस्मानिया का
यह शांत कब्रिस्तान
शायद इस तथ्य पर रौशनी डालता है
कि
आदमी घर बनाता है
लेकिन रहते हमेशा उसमें दूसरे हैं
|| काज़ीपेट के मुर्ग़े ||
हालांकि सूरज सिर पर है
और धूप चौंधियां रही है
काज़ीपेट में दो मुर्ग़े इस घड़ी बांग दे
रहे हैं
हो सकता है
अभी नींद पूरी हुई हो
और दड़बे से बाहर आये हों वे मुर्ग़े
यह भी हो सकता है
कि उत्तर आधुनिक हों काज़ीपेट के
मुर्ग़े
और तयशुदा न रही हो
उनके बांग देने कि घड़ी
जो हो
काज़ीपेट
तो अलस्सुबह का जागा ठहरा
बस उस आलम में गूंज रही
बांग
[ समकालीन हिंदी कविता में अपनी खास पहचान रखने वाले नरेन्द्र जैन की इन कविताओं के साथ प्रकाशित चित्र के के हेब्बार के रूप में पहचाने जाने वाले प्रख्यात चित्रकार कतिंगगेरी कृष्ण हेब्बार की पेंटिंग्स के हैं | कर्नाटक के उडुपी जिले के कतिंगगेरी में 1911 जन्मे हेब्बार को 1961 में पद्मश्री तथा 1996 में पद्मभूषण सम्मान मिला था | ]
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