Friday, May 21, 2010
इतालवी कवि जिसेप्पे उंगारेत्ती की कविताएँ
|| गलीचा ||
फैलता बढ़ता है हर रंग
पहुँचने को दूसरे रंगों तक
और भी अकेला होने को
अगर देखो तो
|| भाइयो ||
भाइयो किस सैन्य दल के
हो तुम ?
रात में काँपता है
शब्द
एक पत्ती फूटती है
तबाह हवा में
बेमन युद्ध आदमी का
आमने सामने
अपनी ही निर्बलता के
भाइयो !
मैं जीवित हूँ
मों साँ मिशेल के इस
पत्थर की तरह
इतना ही ठंडा
इतना ही कठोर
इतना ही सूखा
इतना ही जिद्दी
इतना ही संवेगरहित
इस पत्थर की तरह
ही अनदेखा है
मेरा रोना
जी कर हम
छूट देते हैं
मृत्यु को
|| साफ आकाश ||
इतनी धुंध के बाद
एक एक कर
दिखते हैं तारे
मैं लेता हूँ इस ठंडी हवा
में साँस जिस में रंग
है आकाश का
मैं जानता हूँ मैं हूँ
एक गुजरता हुआ बिंब
एक अमर घेरे के बीच
देखा गया
|| सुख ||
रोशनी और रोशनी और रोशनी
के बुखार में
तपता हूँ
स्वागत करता हूँ
इस दिन का
मधुर होते फल की
तरह
आज रात
मरुथल में खो जाती
चीख़ सा
होगा पछतावा
|| रात ||
इस अँधेरे में
ठंडे हाथों से
अनुभव करता हूँ
अपना चेहरा
देखता हूँ
अपने को तैरता
अनंत विस्तार में !
|| और मत रोओ ||
बंद करो मृतकों को मारना
अगर तुम चाहते हो सुनना
अब भी उन्हें
चाहते हो अगर नष्ट
नहीं हो जाना,
रोओ मत, और मत रोओ !
उन की फुसफुसाहट है अबूझ
घास के उगने जैसा ही है बस
उनका शोर
जहाँ से गुजरता नहीं है कोई सुखी !
|| स्मृति मोह ||
जब रात लगभग खत्म हो जाती है
बसंत शुरू होने से कुछ पहले
और लोग
गुजरते हैं कभी कभी सड़कों से
रोने का एक घना रंग
छा जाता है पेरिस के ऊपर
पुल के एक कोने में
एक दुबली लड़की के
गहरे मौन का अनुभव
करता हूँ मैं
हम दोनों के दुखों की
धमनियाँ एक हो जाती हैं
बहाकर ले जाये जाते हैं हम कहीं
और रहते हैं वहीं
[ जिसेप्पे उंगारेत्ती (8 फरवरी 1988 - 2 जून 1970) इतालवी के एक प्रमुख आधुनिक कवि के रूप में जाने जाते हैं | वह एक पत्रकार, निबंधकार और समीक्षक भी थे | मिस्र में जन्मे जिसेप्पे उंगारेत्ती कुछ समय पेरिस में भी रहे और फिर इटली पहुँचे | प्रथम विश्व युद्ध में वह इतालवी सेना में भरती हुए थे | 1916 में प्रकाशित हुए अपने पहले संग्रह की कविताएँ उन्होंने युद्ध के बीच खंदकों में लिखी थीं - सीधी, आकार में छोटी, भाषा को एक 'जादुई' स्पर्श देती हुई | बाद में उनकी कविताओं का यही रूप और गहराया तथा यही रूप उनकी कविताओं की पहचान बना | यहाँ प्रकाशित कविताओं का अनुवाद प्रयाग शुक्ल ने अंग्रेजी से किया है | इतालवी से अंग्रेजी में अनुवाद का काम पैट्रिक क्रीध ने किया था | कविताओं के साथ दिए गए चित्र इतालवी चित्रकार मोरांदी (1890 - 1964) की पेंटिंग्स के हैं | ]
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इस अँधेरे में
ReplyDeleteठंडे हाथों से
अनुभव करता हूँ
अपना चेहरा
देखता हूँ
अपने को तैरता
अनंत विस्तार में
bahut sundar. kya kavitaen, kya chitra.