
|| खोज ||
एक सपना जो धूल में
लोट रहा है
एक चाहत जो पेड़ से
टूटकर गिरती हुई
पत्ती की तरह थरथराती रही है |
एक सधी हुई आवाज़
जो चीख़ बनकर बिखर चुकी है
एक सोच
लकड़ी के चाकू में तब्दील हो चुकी है
किताबों की आग थककर
राख हो चुकी है
उन चीज़ों का भारी टोटा है
जिनसे गढ़े जाते हैं, अच्छे लोग |
तरह-तरह की आवाज़ें हैं
कभी समाप्त न होने वाले
इस मेले में
रंग-बिरंगी रोशनियों में
गुम होते लोग
अपने आपको ढूंढ रहे हैं |
मुझे नहीं मालूम
मैं कहाँ गुम हूँ
बाजार की भीड़ में,
मेरी आवाज़ गुम है
हिंसक शोर में,
मैं पूछता हूँ सबसे अपना पाता
क्या मुझे आपने
कहीं देखा है ?

|| चेतावनी ||
हम भागती हुई
भीड़ के पैरों की सुविधा हैं,
कुचले जाने को अभिशप्त
हमारा कोई आकाश नहीं है |
सिर्फ़ कविता में है
झिलमिल चाँदनी
और ठंडा गोल चाँद |
हम असंभव सी इस दुनिया में
संभव कैसे करते हैं, जीना
कोई कुछ नहीं जानता |
इस अंतहीन नाटक में
कोई दृश्य नहीं है हमारा
और नेपथ्य में भी नहीं हैं हम |
हम पत्थर की ठोकरों में
काँच की तरह हैं
हर रास्ता बंद है
हमारे लिए
इस चेतावनी के साथ
सावधान ! आगे खतरा है |

|| समय बोध ||
यह अतिरिक्त सावधानी का
समय है
सावधान रहो
कि ख़तरा आ रहा है
या कि आ भी चुका है |
यह डरने का समय है
डरो कि हो सकता है
तुम्हारे साथ कुछ भी
यह शंका का समय है
हर किसी पर शक करो |
यह चीज़ों के बदलने
और बदलते-बदलते
नष्ट हो जाने का समय है |
इसीलिये यह समय
सब कुछ नष्ट किये जाने को
देखते रह जाने भर का नहीं है
यह बचे हुए को
बचाने का समय भी है |
[ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपनी कविताओं से चकित और आकर्षित करने वाले रफ़ीक़ ख़ान बिलासपुर (छत्तीसगढ़ ) में रहते हैं | कविताओं के साथ दिए गए चित्र समकालीन कला में तेजी से अपनी पहचान बना रहीं चित्रकार नवप्रीत ग्रेवाल ढिल्लों की पेंटिंग्स के हैं | चित्रकला में ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट नवप्रीत ने हिस्ट्री ऑफ ऑर्ट में भी पोस्ट ग्रेजुएशन किया है | कई समूह प्रदर्शनियों में अपने काम को प्रदर्शित कर चुकीं नवप्रीत ने अपने चित्रों की दो एकल प्रदर्शनियाँ भी की हैं | जल्दी ही उनके चित्रों की एकल प्रदर्शनियाँ लुधियाना व दिल्ली में होनी हैं | ]
'बचे हुए को बचाने का' रफ़ीक़ ख़ान का समय-बोध सामयिक भी है और जरूरी भी | रफ़ीक़ ख़ान की कविताओं ने प्रभावित किया है | नवप्रीत ग्रेवाल ढिल्लों की सहज व सरल सी पेंटिंग्स ने तो जैसे मन को छू लिया है |
ReplyDeleteनवप्रीत की पेंटिंग्स पहली नज़र में साधारण सी दिखती हैं, लेकिन साधारण सी दिखने के बावजूद पहली बार में ही अपनी छाप छोड़ देती हैं | पेंटिंग्स में दिखने वाली साधारणता ही पेंटिंग्स को खास बनाती है | किसी ने कहा भी है कि साधारणता को साधना एक मुश्किल काम है | नवप्रीत ने साधारणता को साधने का जो मुश्किल काम किया है, उससे ही उनकी कला की साधना और सामर्थ्य का पता चलता है |
ReplyDeleteनवप्रीत जी के चित्रों की एकल प्रदर्शनी का इंतजार रहेगा | वैसे आपको यह जानकारी भी देनी चाहिए थी कि उक्त प्रदर्शनी कब और कहाँ होगी | बहरहाल, नवप्रीत जी को अभी से बधाई और शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteरफ़ीक़ ख़ान की कविताएँ अच्छी तो लगी ही हैं, उन्होंने सोचने पर भी मजबूर किया है | नवप्रीत की पेंटिंग्स भी आकर्षित करती हैं तथा उनके नए काम को देखने के लिए उत्सुकता पैदा करती हैं |
ReplyDeleteरफ़ीक़ ख़ान की कविताएँ और नवप्रीत ग्रेवाल ढिल्लों की पेंटिंग्स एक आश्चर्य की तरह हमारे सामने उपस्थित हैं | सरोकार-संपन्नता रफ़ीक़ की कविताओं का, तो संक्षिप्तता और सहजता नवप्रीत की पेंटिंग्स का दुर्लभ गुण है जो इधर कम पाया जाता है | दोनों को अच्छी रचनाओं के लिए बधाई | नवप्रीत के चित्रों की प्रदर्शनी मैं जरूर देखना चाहूँगा |
ReplyDeleteकविताओं के लिए रफ़ीक़ ख़ान का और पेंटिंग्स के लिए नवप्रीत का आभार | दोनों के लिए शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteरफ़ीक़ ख़ान की कविताएँ और नवप्रीत ग्रेवाल ढिल्लों की पेंटिंग्स अच्छी लगीं |
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