Tuesday, May 4, 2010

हिजम इरावत सिंह की कविता




















|| हैं वे : एक ||

शांत पर्वत को स्पर्श करने वाले
लाल मिट्टी वाले रास्ते के किनारे कुछ लोग
पत्थर तोड़ रहे हैं 'थड़' 'थड़' - हथौड़े से
ज्येष्ठ की तपती धूप में |
समीप से ही भरी हुई ट्रक-गाड़ियाँ
दौड़ते हुए चली गईं धमकाते हुए एक के बाद एक |
थोड़ी दूर पर पहरा दे रहा है एक इंजन
देख कर चले गये हैं कुछ लोग
देखा उन के कुत्तों ने भी उड़ती नज़र से |

हाँफते हुए कुछ कौए
उड़ गये और तेज कर के धूप को |
सुबह के सूरज की प्रथम किरण से
सूर्यास्त की अंतिम किरण तक
बंद नहीं होती उन के हथौड़े की आवाज़
पड़ जाने पर मद्विम आकाश की लालिमा
पोंछ देंगे ललाट से पसीना अपने हाथों से |




















|| हैं वे : दो ||

बाएँ हाथ में पैना, दाहिने में हल
अर-टिटि करके हाँके जा रहे हैं उनके बैल |
फाली के बूज को मारते हैं ठोकर दाहिने पैर से
देख रही हैं आँखें बार-बार हल से बनी खूड़
तड़के जागने वाले कौए उड़ते हैं इधर-उधर सिर पर |
लौट जाता है अंधकार पीछे मुड़ कर |

पीछा करती है हवा |
ताकता है सूरज जैसे निगलने वाला हो |
सिर पर से ताकने पर सूरज के
बैल घास तोड़ते हैं क्रोधित हो कर |
नहाएँगे धूप में फिर
फिर डूब जाएँगे बारिश में |
रहेंगे जोकों के संग
रहेंगे मच्छरों के साथ |
वापस चले जाने पर सूरज के पीछे मुड़ कर
पैर फैलाएँगे बरामदे में |

खाली पेट रहने के ही हिस्सेदार
फटे वस्त्र के ही हिस्सेदार
हैं वे |

[ हिजम इरावत सिंह (1896 - 1951) आधुनिक मणिपुरी साहित्य के महत्त्वपूर्ण रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं | उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं और उपलब्ध हैं | यहाँ प्रस्तुत कविताओं का अनुवाद मणिपुरी के एक युवा रचनाकार इबोहल सिंह काद्ग्जम ने किया है | इबोहल सिंह काद्ग्जम की विभिन्न विधाओं की कई किताबें प्रकाशित हैं | कविताओं के साथ दिए गए चित्र मनोज अमेता की पेंटिंग्स के हैं | ]

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