Thursday, April 22, 2010

आशीष त्रिपाठी की कविताएँ



















|| बेटी का हाथ : एक ||

तुम्हारा हाथ पकड़ना
जैसे बेला के फूलों को लेना हाथों में
जैसे दुनिया की सबसे छोटी नदी को महसूसना क़रीब
जैसे छोटी बहर की ग़ज़ल का पास से गुजरना

जैसे सबसे भोले सवालों को बैठना सुलझाने
जैसे बचपन में छूट गई
अपनी सबसे प्यारी गुड़िया से फिर मिलना

जैसे फिर से गाना
अपने छुटपन के अल्लम-गल्लम गीत

जैसे कंचों के खेल की उमर में
लौटना फिर

जैसे आत्मा के सबसे प्यारे टुकड़े को छूना
















|| बेटी का हाथ : दो ||

तुम्हारा हाथ पकड़कर
दुआ करता हूँ उड़ना सीखते पाखियों के लिए
उन्हें घोंसलों में छोड़कर
दाना बीनने गई उनकी माओं के लिए
काम पर गये
या भीख माँगते बच्चों के लिए

दुनिया से विदा लेती वनस्पतियों
और बोलियों के लिए

गिलहरियों के लिए टकोरियों
मिट्ठुओं के लिए मीठे आमों
मछलियों के लिए जल
धरती के लिए बीजों
की दुआ करता हूँ

नदियों के लिए जल की धार
धरती के लिए हरियाली
आसमाँ के लिए सतरंगी इंद्रधनुष
पर्वतों के लिए मेघों के साथ

दुनिया भर की औरतों के लिए
साँस भर अवकाश
और अकुलाई आत्माओं के लिए
सबसे मीठी धुनों की
दुआ करता हूँ

दुआ करता हूँ
और कहता हूँ - आमीन |
















|| बेटी का हाथ : तीन ||

तुम्हारा हाथ पकड़कर
इच्छा जागती है
पृथ्वी को गेंद की तरह देखने की

फिर मैं तुम्हारी उँगली पकड़
दिखाना चाहता हूँ सारी दाग़दार हवेलियाँ
जिनमें रची जाती हैं अम्लीय बारिश की तकनीकें

जहाँ एक बच्चे का भविष्य रचने खातिर
लाखों लोरियों की ज़बान कर दी जाती है बंद
एक उड़ान के लिए
काट लिए जाते हैं अनगिनत परिंदों के पर

जहाँ अनगिनत खेल बच्चों के
रूठे रहते हैं बच्चों से
बच्चों की पोथियों में सब कुछ होता है
सिवा उनके बचपन के

जहाँ बच्चों से ज्यादा प्यारी लगती हैं
बच्चों की तस्वीरें
जहाँ बच्चों से ज्यादा अपने हैं
रंग, जात, धर्म, कुल

फिर मैं तुम्हें सुनाना चाहता हूँ
धूल में भरे
ठुमक-ठुमक चलते
चाँद पकड़ने की जिद करते
ईश्वर के बचपने के गीत

मेरी बच्ची
मैं तुम्हारे बचपन की पूरी उम्र
की कामना करते हुए
तुम्हारे सब संगवारियों के बीच
तुम्हें छोड़ आना चाहता हूँ |

[ 1973 में जन्में आशीष त्रिपाठी की दिलचस्पी कविता के साथ-साथ अभिनय और नाट्यालेखन में भी है | कविताओं के साथ दिये गये चित्र रेणुका सोंधी गुलाटी की पेंटिंग्स के हैं | रेणुका अपनी पेंटिंग्स की तीन एकल प्रदर्शनियां कर चुकी हैं तथा कई समूह प्रदर्शनियों में अपने काम को प्रदर्शित कर चुकी हैं | आईफेक्स की कई वार्षिक प्रदर्शनियों में उनका काम चुना गया है | दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम स्थित स्टूडियो में काम कर रहीं रेणुका 'बेटी बचाओ आन्दोलन' चला रहे एक एनजीओ के साथ भी सक्रीय रूप से जुड़ी हुई हैं | ]

2 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुती मानवता पे आधारित सार्थक कविता के लिए धन्यवाद /जब तक हम इन स्वार्थी और भ्रष्ट राजनेताओं को मनमानी करने से नहीं रोकेंगे, देश में स्थिति नहीं बदलेगी / वैकल्पिक मिडिया के रूप में ब्लॉग और ब्लोगर के बारे में आपका क्या ख्याल है ? मैं आपको अपने ब्लॉग पर संसद में दो महीने सिर्फ जनता को प्रश्न पूछने के लिए ,आरक्षित होना चाहिए ,विषय पर अपने बहुमूल्य विचार कम से कम १०० शब्दों में रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ / उम्दा देश हित के विचारों को सम्मानित करने की भी वयवस्था है / आशा है आप अपने विचार जरूर व्यक्त करेंगें /

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  2. aahish ji ki sabhi kavitayen behad komal ehsaason se bhari hain ..khas taur par pehli kavita ko padh ke aisa laga jaise gulaabi hath thande faahe se dil ko sehla raha ho ..

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