Wednesday, April 14, 2010

आशमा कौल की पांच कविताएँ

अंतरंग कला प्रतिष्ठान का एक निमंत्रण हमें मिला है, जो आशमा कौल के नए प्रकाशित कविता संग्रह 'बनाए हैं रास्ते' पर कानपुर में आयोजित की जा रही विचार संगोष्ठी को लेकर है | 'बनाए हैं रास्ते' आशमा कौल का तीसरा कविता संग्रह है जो अभी हाल ही में कल्याणी शिक्षा परिषद् से छप कर आया है | 'अनुभूती के स्वर' तथा 'अभिव्यक्ति के पंख' शीर्षक से प्रकाशित उनके पहले के दो कविता संग्रह कविता के संवेदनशील पाठकों के बीच प्रशंसित हो चुके हैं, और उनमें प्रकाशित कविताओं के भरोसे आशमा कौल कई संस्थाओं से सम्मानित हो चुकी हैं | जीवन के प्रति गहरे लगाव और रागबोध से संपन्न आशमा की कविताओं में वर्तमान समय और उससे जन्मे प्रत्यक्ष आवेग को साफ पहचाना और महसूस किया जा सकता है | यहाँ प्रस्तुत कविताएँ आशमा कौल के तीसरे तथा नए कविता संग्रह 'बनाए हैं रास्ते' से ली गई हैं |

|| जीवन ||

स्वप्नों के बादल
जब उड़ते हुए
यथार्थ की धरा पर
बरसते हैं
यादों के अनगिनत मोती
तब समय के धागे से
निकलकर बिखरते हैं |
महसूस होता है
उस समय,
यह उड़ना और बरसना
ही जीवन है |

भोग-विलास में
उड़ते हुए मनुष्य को
मोक्ष प्राप्ति के लिए
बरसना है |

बादल का मोक्ष है
धरती पर बरसना
मनुष्य का मोक्ष है
मिट्टी से मिलना |

सपनों के बादल
बार-बार उड़ते हैं
यथार्थ की धरा पर
पुनः बरसते हैं
जीवन का क्रम
इसी तरह चलता है |




















|| अहसास ||

आसमान जब मुझे अपनी बाँहों में लेता है
और जमीन अपनी पनाहों में लेती है
मैं उन दोनों के मिलन की कहानी
लिख जाती हूँ श्वास से क्षितिज बन जाती हूँ |

दिशाएं जब भी मुझे सुनती हैं
हवाएं जब भी मुझे छूती हैं
मैं ध्वनि बन फैल जाती हूँ
और छुअन से अहसास हो जाती हूँ |

किसी शंख की आवाज जब मुझे लुभाती है
किसी माँ की लोरी जब मुझे सुलाती है
मैं दर्द से दुआ हो जाती हूँ
आंसुओं से ओस बन जाती हूँ |

अनहद नाद जब भी बज उठता है
और अंतर्मन प्रफुल्लित होता है
मैं सीमित हो असीमित में विलीन होकर
आकार से निराकार हो जाती हूँ |

उस अलौकिक क्षण में मैं स्वयं को उसी का अंश मानती हूँ
उस अद्वितीय पल में मैं उसी का रूप पाती हूँ |




















|| साक्षी ||

मैं जड़ बनना चाहती हूँ
जड़ की तरह धैर्यवान
उसी की तरह अपनी जमीन
नहीं छोड़ना चाहती हूँ
चाहती हूँ मेरी जमीन पर
आशाओं के नए फूल खिलें
प्यार की कलियाँ महकें
सदभाव की बेलें पनपें
और मैं उस बसंत की साक्षी बनूं

मैं किनारा होना चाहती हूँ
किनारे - सी संयमी
उसी की तरह अपनी शर्म
अपना पानी नहीं छोड़ना चाहती
चाहती हूँ मेरा पानी
शांत बहता रहे
निरंतर सागर से मिलने की
कहानी कहता रहे
और मैं उस मिलन की साक्षी बनूं |














|| मौन रह कर ||

मौन रह कर
यह शीशा ही
बता सकता है कि
उमे कैसे ढलती है

मौन रह कर
सिर्फ पगडंडी ही
बता सकती है कि
कारवां कैसे गुजरते हैं

मौन रहकर
यह दिल ही
बता सकता है कि
जज्बात कैसे मचलते हैं

मौन रह कर
यह पर्वत ही
बता सकता है कि
तपस्या कैसे करते हैं

मौन रह कर
यह शून्य ही
बता सकता है कि
शोर कैसा लगता है

मौन रह कर
यह नियति ही
संकेत कर सकती है कि
सृष्टि कैसे चलती है














|| आंसू ||

आंसू दर्द की
मौन भाषा कहते हैं
वे हमेशा गर्व से
पलकों किनारे रहते हैं
क्षणभंगुर - सी अपनी
जिंदगी में जाने इतना दर्द
कैसे सहते हैं
आंसू दर्द .....

मन के बोझ को
हल्का बनाने की खातिर
पलकों की सेज छोड़
गालों पर आकर बहते हैं
आंसू दर्द .....

राजा से रंक तक
न छिपा सके जिसको
शोर के बिना ही
ये दर्दे - दास्तान कहते हैं
आंसू दर्द ......

[ कविताओं के साथ दिये गये चित्र युवा कलाकार शिव वर्मा द्वारा अभी हाल ही में इंडिया हैबिटेट सेंटर की कला दीर्घा में प्रदर्शित इंस्टोलेशन के हैं, जो उन्होंने विभिन्न धातुओं के मूर्तिशिल्पों तथा एलसीडी प्रोजेक्शन से तैयार किये थे | ]

8 comments:

  1. आपकी सभी रचनाएं पढ़ी, अच्छी लगीं

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  2. यश उपाध्यायApril 14, 2010 at 8:15 PM

    आशमा कौल में जीवन से जुड़े छोटे-छोटे अवसरों को कविता में ढाल लेने का जो विशिष्ट रचनात्मक काव्य-कौशल है, उसके कारण ही उनकी कविताएँ पहले ही पाठ में ध्यान देने की जरूरत को रेखांकित करती हैं | इन पांच कविताओं ने उनके नए संग्रह 'बनाए हैं रास्ते' को जल्दी से जल्दी पढ़ने के लिए प्रेरित किया है |

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  3. मृदुला 'गुंजन'April 14, 2010 at 8:50 PM

    आशमा कौल के पिछले दोनों कविता संग्रह 'अनुभूती के स्वर' और 'अभिव्यक्ति के पंख' मैंने पढ़े हैं | उनका नया कविता संग्रह आया है, यह जान कर अच्छा लगा | आशमा कौल के नए संग्रह से कविताएँ देकर भी आपने हम जैसे पाठकों पर उपकार किया है | उनके नए संग्रह की इन कविताओं को पढ़ कर लगता है कि उनका 'अस्तित्व-बोध' और सघन व गंभीर हो चला है | वह विकसित हुआ है, जहाँ मानवीय जीवन को, उसके महत्त्व को, उसके होने की, सर्जना, संघर्ष, संकल्प, संवेदना में ही अस्तित्वमान माना जा सकता है | आशमा कौल को नये संग्रह के लिए बधाई और शुभकामनाएँ |

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  4. अनवर शमीमApril 15, 2010 at 1:49 AM

    आशमा कौल की कविताएँ अच्छी लगीं | एक कवि के रूप में आशमा कौल से और उनकी कविताओं से परिचित कराने के लिए मैं तहेदिल से आपका आभारी हूँ |

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  5. नंदकिशोर विमलApril 15, 2010 at 4:52 AM

    आशमा कौल की कविताएँ पहली बार पढ़ने का मौका मिला है, और वह प्रशंसा योग्य लगी हैं | उन्होंने अपनी कविताओं में समय और समयातीत को, ऐन्द्रिय और अतीन्द्रिय को जिस खास संयोजन में ढालने का कौशल दिखाया है, उसके चलते उनकी कविता अपनी विशिष्ट पहचान बनाती सी दिखती है | उनकी 'मौन रह कर' शीर्षक कविता की मैं खास तारीफ करना चाहूँगा |

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  6. शशिभूषण सिंहApril 15, 2010 at 8:00 PM

    आशमा कौल को उनके नए संग्रह 'बनाए हैं रास्ते' के प्रकाशित होने के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएँ |

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  7. प्रदीप जोशी 'व्योम'April 15, 2010 at 8:12 PM

    आशमा कौल की कविताएँ पसंद आईं | शिव वर्मा के इंस्टोलेशंस के चित्रों के साथ प्रकाशित होने से उनका प्रभाव और घना हो गया | आपकी सूझ की तारीफ और आशमा कौल व शिव वर्मा के लिए शुभकामनाएँ |

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