Monday, April 2, 2012

प्रोदोश दासगुप्ता के मूर्तिशिल्पों के साथ सुधीर मोता की चार कविताएँ



















|| नायक ||

भीड़ इकटठी होती है

उस मंच से उदित होता है
एक नया नायक

उनींदी आँखों से
देखते हैं वे थके लोग
कंधे पर टाँगे सफ़र की पोटली

सुनते हैं ललकार
जुड़ते हैं जयजयकार में

अचम्भे से देखते हैं
शहर
शहर एक चक्का जाम की शक्ल में
थम जाता है
देश में आने से पहले
सड़कों पर आ चुकी होती है क्रांति
क्रांति के अनुयायी
कुछ दुकानें लूटते हैं

एक बीमार अस्पताल नहीं पहुँच पाता
कुछ की रेल छूटती है
कुछ की नौकरी

इस तरह एक अज्ञात ठग
रातोंरात प्रसिद्ध हो जाता है
पन्नों पर
और परदों पर
छोटे छोटे सपने
उससे बड़े
और बड़े
बड़े से बड़े
इस तरह क्रम से
सपने देखने वालों का
पिरामिड खड़ा होता है

शिखर पर खड़ा वह
नया नायक
मूँछ उमेठता
मुदित होता है |



















|| उलट प्रवाह ||

बिल्कुल तुम दोनों पर गए हैं
तुम्हारे बच्चे

लोग कहते
और हम
सृजक होने के सुख से
सराबोर हो जाते

आँख नाक होंठ
ठोड़ी माथा
इस तरह गोया
सारे चेहरे का मिलान करते

फिर बड़े होते होते
चाल ढाल और आदतों से

आज चकित हूँ
पत्नी की बात पर
कहती है
तुम बिल्कुल बच्चों की तरह
होते जा रहे हो

छोटे वाले की तरह
जल्दी नाराज हो जाते हो
बड़े की तरह
लापरवाह हो गए हो

सिनेमा में
पड़ोस की सीट वाले से
पूछते हो
कितनी देर हो गई शुरू हुए

टीवी पर सास बहू के सीरियल
और समाचार छोड़
अटपटे गाने
या मसखरों की हरकतें देखते हो

मैं ताज्जुब करता हूँ
गुणसूत्रों के रसायन का
यह उलट प्रवाह है
पिता का बच्चों पर जाना

या जीवन की
उत्तर गाथा का शुरू होना है
बचपन का लौट आना |



















|| कौन हैं वे ||

अब तक तो यही पता है
यहीं पर है जीवन
इस पृथ्वी नामक उपग्रह पर

इसी से बना यह तथ्य
कि मृत्यु भी यहीं है
इस पृथ्वी पर

भूकम्प तूफान बवंडर बिजली भूस्खलन के आँकड़े
चन्द्र बुध मंगल शनि या
अन्य किसी ग्रह के संदर्भ में भी होंगे
वैज्ञानिकों के पास
मृत्यु के नहीं
क्योंकि मृत्यु के आँकड़ों के लिए
पहले जीवन का होना बहुत जरूरी है

पहले जरूरी है
जन्म की ख़ुशी के गीत
खेती किसानी उड़ावनी के गीत
प्रेम और उल्लास के गीत
मोह के और
एक दूसरे के प्रति राग का गीत
जैसे जरूरी हैं
बिछोह की कसक के लिए

हममें से जितने लोग
जानते हैं जीवन के बारे में
दुखी होते हैं
सौ हजार लाख या केवल एक मृत्यु में
उन लोगों के अतिरिक्त
जो जानते हैं केवल
मृत्यु के बारे में

जिनके पास मृत्यु के अट्टहास हैं
भय की फसल के बीज हैं
घृणा की शोकान्तिकाएँ हैं

पृथ्वी के बारे में जानते हैं
भूखंडों की कीमत जानते हैं
मृत्यु के थोक बाजार की
नब्ज
अच्छी तरह पहचानते हैं

कैसे मृत्यु विशेषज्ञ
बन गए ये लोग
जीवन के बारे में जाने बगैर

कौन हैं वे लोग
कहाँ के
क्या सचमुच इसी उपग्रह के ?



















|| अभी-अभी ||

उस बक्से में देखा अभी
एक हत्या होते हुए
देखा धूँ धूँ जलता हुआ
एक मकान
जिसके भीतर
प्रेम लाड़ दुलार सत्संग
और मन और देह के
न जाने कितने
रूपक रचे गए होंगे

खाक होते हुए खिलौने
किताबें तस्वीरें ख़त
जिनकी कोई प्रतिकृति
किसी के पास नहीं होगी
जिन्हें कोई बीमा कम्पनी
या सरकार
मुआवजे से नहीं भर सकेगी

इसके बाद नहीं सिहरेगा कोई
ऐसा दृश्य देख कर
जैसे अब नहीं काँपता जी
रेल दुर्घटना दंगे विस्फोट
में लोथड़ा हुई लाशों
की तस्वीरें देख कर

अभी देखा
नारी को पहली बार
इतनी कुटिल
सन्तानों को इतना कृतघ्न
संबंधों को देखा
औद्योगिक उत्पाद की तरह
लादे उतारे जाते

ऐसे दृश्य जब
हाथ पकड़कर बिठा लेते हैं
शून्य मस्तिष्क लिए
आप घंटों बैठे रहते हैं

रुक जाते हैं न जाने कितने
सलोने शब्द
प्रेम कविता बनने से
गज़ल रूठ जाती है
सत्यकथाओं के भार से
कथाएँ दब जाती हैं

अभी-अभी
एक रचना की
भ्रूण हत्या हुई

आपको पता भी
न लगा |

[सुधीर मोता की कविताओं के साथ दिए गए चित्र प्रोदोश दासगुप्ता के मूर्तिशिल्पों के हैं | यह वर्ष प्रोदोश दास गुप्ता का जन्मशताब्दी वर्ष भी है | 1994 में वह यह संसार छोड़ कर न चले गये होते तो इस वर्ष अपना सौंवा जन्मदिन मनाते | उनके काम को देखना अपने समय और अपने संसार की अनुगूँजों को महसूस करना है | 'कलकत्ता ग्रुप' के संस्थापक सदस्य के रूप में प्रोदोश जी ने भारतीय मूर्तिशिल्प को वास्तव में समकालीन पहचान दी है | उनके मूर्तिशिल्प नई दिल्ली में ललित कला अकादमी की दीर्घा में प्रदर्शित हैं, जिन्हें 13 अप्रैल तक देखा जा सकता है |]

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