Wednesday, October 20, 2010

राग तेलंग की कविताएँ



















|| आखिरी बार ||

जानता हूँ
आखिरी बार
मिला है यह
मनुष्य का जन्म

आखिरी बार
मिले हैं
इस जन्म में दोस्त

आखिरी बार के लिए हैं
ये आपसी संबंध

आखिरी बार हो रहा है
यह सब कुछ
पहली बार का

आखिरी बार
मुस्कुराना है यह

आखिरी बार
एकदम अचानक एक दिन
रूठ गई थी मेरी माँ

आखिरी बार
रहना है इस घर में

आखिरी बार
लिखना है यह सब कविता में

हमेशा के लिए
कुछ भी नहीं यहाँ
सब है आखिरी बार के लिए

इस सब आखिरी बार को
सहेजना होगा
बाँध के पक्का रखना होगा साथ
जब तक भी है

जीने के हर पल के लिए
काम आएँगी
आखिरी बार की बातें |



















|| चाहता तो ||

अँधेरा था उन स्थानों पर
जहाँ प्यार से देखने भर से
पहुँच सकती थी उम्मीद
कोई रोशनी बनकर

अँधेरा वहाँ कई शक्लों में था
इसलिए पहुँचना जरुरी था
उसमें से दिखती
कोई पुकार पर किसी को

मैं चाहता था मुझसे पहले
वहाँ मेरी आवाज़ पहुँचे और लगे
दौड़ती आती हुई

अँधेरा गहरा था पाताल जैसा
जहाँ धरती के
कई लोगों की मुस्कुराहट
इकट्ठा बंद होकर
भय के अनेक दु:स्वप्नों से
लिपटी बैठी थी
घुटनों को थामे

चाहता तो कोई और भी
सर्वाधिक प्रसन्न
देख सकता था यह सब

मगर जब छूट भी यहाँ
यह सब नज़र अंदाज कर देने की
तो देखता क्यों कोई रूककर
जाते हुए तेजी में
रोशनी से रोशनी की तरफ |



















|| तुम ही बताओ ||

ज़िंदगी की खुरदुरी सतह पर चल रहा हूँ और
अपनी शक्ल को
चिकना होते देखना चाहता हूँ
मैं भी कितना अजीब हूँ

हवा को हाथ में थामना चाहता हूँ
ये जानते हुए भी कि
पतंग उड़ाते हुए
मेरे हाथ में ही है डोर
अजीब है यह सब

ये देखते हुए कि मैं
अपने ही साए का पीछा करते हुए
पहुँचता हूँ आखीर में वहाँ
जहाँ कोई नहीं होता
मैं भी नहीं एक तरह से
पीछा करता हूँ खुद का आज भी

कोई भी रात
नहीं होती इतनी लंबी कि
सुबह का इंतज़ार
इंतज़ार ही बना रहे
यह जानते हुए भी
सशंकित सा
करता रहता हूँ काम दिन भर

इतने अँदर अपने कि
डूब जाएँ तो थाह भी न मिले
मेरी प्यास है कितनी गहरी
सात समुंदरों से भी ज्यादा
कहना चाहता हूँ सूखे गले से
पर कह नहीं पाता

मैं भी कितना अजीब हूँ
बाईं तरफ झुकना चाहता हूँ पर
ये सोचकर नहीं झुकता कि
घूमती हुई धरती का संतुलन
कहीं गड़बड़ा न जाए

मेरा झुकना व्यर्थ नहीं जाएगा ये जानता हूँ मैं
सही है उस दिशा में झुकना ये समझते हुए
मैं अपनी जगह कायम हूँ अब तक
मैं भी कितना अजीब हूँ

जानता हूँ
हूँ मैं अपनी ही गिरफ्त में
जाने कब से जकड़े हुए ख़ुद को
ख़ुद के ख़िलाफ
करता नहीं वक्त पर आज़ाद
अपने भीतर के परिंदे को
और चाहता हूँ
हो वैसा मेरे साथ
जैसा मैं चाहता हूँ |















|| एक दिन ऐसा होगा कि ||

ऊपर वाले को छोड़कर
और किसी को पता नहीं होगा और
हम चले जाएँगे एक दिन बिना बताए अचानक

जिन-जिनको होगा अफसोस
हमारे ऐसे चले जाने का
उनकी यादों में आएँगे हम ठीक वैसे ही बिना बताए

जो रो रहे होंगे उनको
दिलासा देने आएँगे हमारे जैसे हाथ
हालाँकि हमारी जगह भरी नहीं जाएगी हमारे जाने के बाद
फिर भी धीरे-धीरे वक्त भर देगा
हमारे जाने से पैदा हुआ खालीपन

हम चाहेंगे जिनसे किए हुए वादे हमें निभाने थे
वे उतने ही पूरे माने जाएँ
कुछ अधूरे काम जो हम छोड़ जाएँगे
उन्हें पूरा करेंगे हमारे अपने

हमारे सूखते हुए कपड़े
जब आखिरी बार रस्सी से उतारे जाएँगे
तब हम तुम्हारी स्मृतियों में भी झूल रहे होंगे याद रखना

हमारे बाद हमारे साथ गुज़ारे वक्त का जायजा
जिस पल तुम ले रहे होगे
तुम्हारी आँखों की कोर में उस वक्त नमी तैर रही होगी

चाँद से झाँकेंगे हम देखना
धरती की तरफ
इस दुआ के साथ कि
बची रहे जीवन की उम्मीद
हमेशा के लिए
आते रहें नन्हे मेहमान तय समय पर और
जाते रहें लोग हमारी तरह बिना बताए |














|| परिन्दे ||

हवा में उड़ते हुए
परिंदों का दम भी फूलता है
ठीक वैसे ही जैसे
पानी में डूबने से
कई बार बचते हैं तैराक

सड़क पर
हमारा कोई एक सफर
कितनी ही बार
होते-होते बचता है आखिरी
ऐसे कई वाकयों से भरा होता है
ऊपर का आसमान

लेकिन
हौसला सिर्फ हमारे पास ही नहीं
पंछियों के पास भी होता है

उनकी आँखें
हमसे बेहतर पहचान रखती हैं
शिकारी निगाहों की
इस हुनर के बगैर
बेमतलब होता है
बेहद ताकतवर पंखों का होना

खतरे कैसे भी हों
हवा में
उनकी मौजूदगी जानते हुए भी
बेखौफ उड़ान भरते रहते हैं परिंदे
एक ऐसा भी होता है हिम्मत का चेहरा

सात समंदरों से भी बड़े और
चौतरफा फैले इस बियाबान आसमान में
देखने में
बेहद अकेले दिखाई देते हैं परिंदे

मगर शायद ऐसा होता नहीं है
और तो और
हमारी इस फिक्र की
परवाह भी तो नहीं करते परिंदे |

[ प्रतिष्ठित 'रज़ा पुरस्कार' से सम्मानित राग तेलंग के पाँच कविता संग्रह प्रकाशित हैं तथा उनकी कविताएँ देश की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं | उनका नया संग्रह भी तैयार है | प्रख्यात लेखक उदय प्रकाश ने उनके एक कविता संग्रह के फ्लैप पर उनकी कविताओं का संक्षिप्त आकलन करते हुए उनकी कविताओं को 'हमारे समय की जरूरी और अर्थवान कविताओं' के रूप में रेखांकित किया है | राग तेलंग की यहाँ प्रकाशित कविताओं के साथ लगे चित्र समकालीन कला जगत में तेजी से अपनी पहचान बना रहे युवा चित्रकार सुरेश कुमार की पेंटिंग्स के हैं | ]

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