Friday, October 8, 2010

मदन सोनी की कविताएँ














|| बसंत : उस लड़की के खून में ||

केशर और सिंदूर रंगों से रेखांकित वह शब्द
उस लड़की के खून में अचानक घुल गया है
लड़की चकित है :
हाथ में खुली किताब से गर्म भाप निकलती है | रोज़
दोपहर बाद उसका चेहरा अक्सर
बगैर गुस्से के तमतमाया रहता है

खिड़की के बाहर
दिन के तीसरे पहर की तेज़ धूप में
हिलती पीली झाड़ियाँ
शरारती छोकरे की तरह
उसे धीरे-धीरे बुलाती हैं

कोई वर्णहीन अक्षर
उसकी चेतना की फुनगियों पर
किसी चिड़िया की तरह फुदकता है
लड़की उसे लिखने की कोशिश में
लिखी-सी रह जाती है

घर लौटते हुए उसे लगता है
उसके पैरों में गुब्बारे बँधे हैं
उसके कपड़ों से हज़ारों आँखें चिपक गई हैं

हालांकि यह उसका भ्रम है
लेकिन बिस्तर पर लेटते ही यह भ्रम
उसकी बगल में लेट जाता है
रात भर नींद की अँधेरी घाटियों में उसका पीछा करता
सुबह
सामने वाले दरख़्त पर बैठे पक्षी के गले में बैठ
ऐसे चीखता है
कि लड़की
नींद से फिसलकर बिस्तर पर गिरती है














|| चिड़िया, जिसे शक है की वह चिड़िया है ||

वह मैदान नहीं है
जहाँ बच्चे दौड़ रहे हैं
न वे बच्चे हैं, जो मैदान में दौड़ रहे हैं
एक चिड़िया
जिसे शक है कि वह चिड़िया है
रेफ़री के कानों में लगातार चीख़ रही है

बच्चे थककर गिरते हैं मैदान में
मैदान टूट कर उड़ता हवा में
चिड़िया चीखती लगातार-
वह थकान नहीं
जो धराशायी कर रही बच्चों को
न वह हवा है
जो टूट कर उड़ते मैदान को
जंगल की आतुर भुजाओं में सौंप रही है

चिड़िया के लिए
वह मैदान नहीं है
वे बच्चे नहीं हैं
वह थकान
वह हवा नहीं है
सिर्फ़ एक रेफ़री है
जिसके सुनसान कानों में
सेंध लगाना चाहती है उसकी चीख़

रेफ़री के लिए
वह चिड़िया नहीं है
वह चीख़ नहीं है
वह शक नहीं कि वह रेफ़री है
सिर्फ़ एक खेल है
जिसे वह संचालित कर रहा है |














|| सेना का पुनरागमन ||

पूरे जंगल को घराशायी करती वह सेना
फिर तुम्हारे आंगनों में पड़ाव डाले है
सम्राट विहीन परास्त थकी हुई
प्यास
एक लोटे पानी की याचना में
डूबा है उसका इतिहास
इतिहास एक और
इतिहास की तरह न लिखा गया
बच्चों की किताब से बाहर

गाँव से बाहर
जीर्ण कुआँ
डूब कर मरी थी दुहाजू की बहु
कोई नहीं रोया
एक भयभीत कुत्ता भूंकता रहा लगातार
सेना को कुएँ के
इर्द गिर्द देख

कुत्ते की स्मृति में
बार-बार ताज़ा होता है इतिहास
वही लश्कर है
पानी मिलते जी उठेगा
जिरहबख्तर बंद अस्त्रों से लैस
सिर उठायेगा एक चमचमाता मुकुट
गाँवों और जंगलों को रौंधता जुलूस
गूंजता कुएँ में देर तक

कुत्ता चुप हो जायेगा
गंध के सहारे
सिंह दरवाज़ों तक जायेगा
गुस्से में संभव है
किसी सैनिक को काट खायेगा
मारा जायेगा |

[ मदन सोनी की कविताओं से साथ प्रकाशित चित्र आसिफ मंसूरी की पेंटिंग्स के हैं ]

2 comments:

  1. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है

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  2. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!!

    नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...

    कृपया ग्राम चौपाल में आज पढ़े ------
    "चम्पेश्वर महादेव तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल चंपारण"

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