Saturday, January 15, 2011

अमित कल्ला की कविताएँ



















|| आखिर कब तक ||

आखिर कब तक
अवस्थित आकाश
बनता रहेगा प्रत्यक्षदर्शी
कौन-सा योग बाँधे है काल को
स्वप्न और सत्य के मध्य की धुरी
तोड़ती अभ्यस्त मौन शिल्पों का
दीवार के पार दखल देता सूर्य
गढ़ता विन्यास शाश्वतता का
आखिर कब तक
समय तत्त्व की अंतर्वृतियाँ
प्रसारित करेंगी अनपेक्षित राग
लहरें संभव ही डुबो देगी
बरसाती धुँध
अगली सुबह
केवल दो सुन्दर पंख
दूर-दूर
विशाल पत्तों के नीचे
हरियाले खेतों में
बहते जल में |



















|| सुनहरा स्वप्न ||

बहुत छोटा
रेत का किला
लाल सफ़ेद रंगों के
बीचों बीच
समुद्र की लहरों के
साथ - साथ
तैरती हैं इबारतें
संगेमरमरी ज़मीं पर
उलटी सीधी रेखाओं में उलझा
समागम का अर्थ
सूरजमुखी के खेतों में
बैठी आकाशीय लतिका
अकारण ही नहीं कुरेदती
खुरदरी सतहों पर अपना नाम
एतराज़
नम ओस में भीगी
आंखों की उन पुतलियों को
जिन्होंने अब तक नहीं देखा
एक भी
सुनहरा स्वप्न |












|| बार - बार भरता ||

बार - बार भरता
क़तरा - क़तरा दोपहर
अपने आप सींचता
हर रिश्ता
अकसर
दो सतहों के बीच
आमने - सामने
बेकाबू - सा हो जाता है
निरुपाय
पाँव पसारता समन्दर
अनकहा सत्य
बिखरा -बिखरा शिला - स्वप्न
अंग -अंग जन्म लेती है अँजुली
कौन - से घट में घटता
आखिर
रह जाती हबीबी केवल
अचेत पक्के रंग
निथरता जल
साहिब जी
जीवित - मुकति गढ़ता है
करतार
बार - बार भरता है |



















|| रिश्ते हैं इनसानों के साथ ||

हर प्रतीक की अपनी कहानी है
रिश्ते हैं इनसानों के साथ
कुछ छिपे कुछ उजागर
लेकिन बुनावट साफ़ दिखाई देती है

माटी समेटती विस्तार
सफ़ेद रंग करते ठंडे ज़ख्मों को
लकीरें बहती नदी-सी हथेली में
लाल त्रिभुज उठाता भार परछाइयों तक

ऐसे ही प्रतीक बैठे
चरखे पर
कुछ न कुछ तो रचा ही जाएगा :
नये तारों का जन्म
नया क्षितिज
जोगिया दोहराएगा बुल्लाशाह
गेहूँ की बालियाँ छूएँगी
पत्ते पीपल के
आकाश को पंख लग आएँगे

चुने हैं ऐसे ही प्रतीक उसने
कोई कुछ न कह सकेगा
क्योंकि रिश्ते हैं उनके इनसानों के साथ |

[अमित कल्ला की कविता और चित्रकला में समान दिलचस्पी और सक्रियता है | उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा उनकी पेंटिंग्स एकल व समूह प्रदर्शनियों में देश-विदेश में प्रदर्शित हो चुकी हैं | आर्ट्स एण्ड एस्थेटिक्स में एम ए अमित ने तांत्रिक कला का गूढ़ अध्ययन किया है तथा राजस्थान के भक्ति साहित्य पर वह शोध कर रहे हैं | उन्होंने जापान में अंतर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी के आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाई है | अमित भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं | यहाँ कविताओं के साथ दिये गए चित्र अमित की पेंटिंग्स के ही हैं |]

3 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति

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  2. आखिर कब तक
    समय तत्त्व की अंतर्वृतियाँ
    प्रसारित करेंगी अनपेक्षित राग
    लहरें संभव ही डुबो देगी
    बरसाती धुँध
    अगली सुबह
    केवल दो सुन्दर पंख

    शब्दों का सुंदर संयोजन है अमित जी के पास .....

    ऐसे ही प्रतीक बैठे
    चरखे पर
    कुछ न कुछ तो रचा ही जाएगा :
    नये तारों का जन्म
    नया क्षितिज
    जोगिया दोहराएगा बुल्लाशाह
    गेहूँ की बालियाँ छूएँगी
    पत्ते पीपल के
    आकाश को पंख लग आएँगे

    वाह .....अति सुंदर ....
    अनल जी अमित जी से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया .....!!

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  3. क्या बेहतरीन शब्द दिए है अमित जी ने अपनी रचनाओं को ... और भाव के तो क्या कहने .... बहुत खूब

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