Monday, May 9, 2011
पंकज राग की कविताएँ
|| अभी वक्त है ||
मेरे बच्चे भींगे-भींगे से हैं
जितना पानी मेरे घर में है, उतने से ही मेरे बच्चे भींगे-भींगे से हैं
समय कच्चा है
मौसम फूला-फूला है
जो न है वह आग है
जो है वह इंद्रधनुष है
जो नहीं होगा वह निषिद्ध है
जो होगा वह सुंदर संसार है |
मेरे बच्चे मेरे सपनों के राजा हैं
मिठाइयों में लड्डू हैं
पिछवाड़े के बंद दरवाज़े और सामने की ईंटों के बीच
जो महफूज़ है, वह मेरा आँगन नहीं मेरे बच्चे हैं
जो दबे पाँव आता है
वह सन्नाटा नहीं रहता
क्योंकि मैं ज़ोर-ज़ोर से बोलता हूँ
जैसे रात की कहानी में मिट्ठू
जिसे मैं बूढ़ा नहीं होने देता
तोता, मैना, शेर, हाथी - और जंगल में सुख ही सुख |
रात की कहानी एक मिथक की निरंतरता है
एक घाट का पानी
घाट की हरी घास,
चाह के साथ करिश्मा
पूर्वाग्रह भरी विजय
कोई दावानल नहीं, कोई सूराख़ नहीं
सुरंगों की मिट्टी भी शुद्ध
वहाँ भी गंध सोंधी
आश्वस्त करती थपकियाँ
और भीनी-भीनी नींद |
अभी वक्त है उस रात के आने में
जब मेरे बच्चे इन मिथकों की खिड़कियाँ खोलेंगे
वह एक व्यस्क रात होगी
और मैं अगली सुबह बूढ़ा होकर उठूंगा |
पर अभी वक्त है
अभी तो मैं जवान हूँ
और मेरे बच्चे भींगे-भींगे से हैं |
|| फूटने दो रंग ||
तुम एक अलहदा तस्वीर बन कर नहीं बोलोगी किसी दिन
मैं क्यों रंग तुममें भरूँ ?
रंग झीने नहीं होते
मन अधडूबा रहे,
फिर भी अकड़ जाते हैं रंग
रंग लौटते नहीं,
रंग चुक जाते हैं |
तुम भरी पूरी रहो, न रहो,
पर सलामत रहो
पराकाष्ठा या चरम पर न भी पहुँचो
पर निरन्तर रहो,
कालजयी नहीं, आत्मजयी बनो
ऐसे ही हिलोरती रहो पर छिटको नहीं |
उगने दो गेहूँ की बालियों को
फैलने दो वटवृक्ष, फूल, पौधे, बांस
फूटने दो रंग, चटकने दो गंध
होने दो सब गाढ़ा-गाढ़ा,
तुम यूँ ही मद्धम रहो |
रीतने दो काग़ज को
सुलगने दो आकृतियों को
बनने दो लाल, नीला, पीला प्रचंड
बढ़ता जाए ठाठ-बाठ, टंगता जाए रूप-रंग
बढ़ती जाए ज्योति उनकी
फूले फले धूप हवा, चढ़े वैभव, घेरे रहस्य
बने हुए श्वेत शुभ्र तुम तो बस पसार दो |
[इतिहास के विद्यार्थी और अध्यापक रहे पंकज राग ने भारतीय प्रशासनिक सेवा का रास्ता जरूर पकड़ा, लेकिन कविता से उनका जो रिश्ता बचपन में ही बन गया था वह नहीं छूटा | इतिहास और पुरातत्व में विशेष रूचि रखने वाले पंकज राग की कविताओं ने पिछले वर्षों में ध्यान आकृष्ट किया है | पंकज फिल्म संगीत के भी गंभीर अध्येता हैं | यहाँ प्रकाशित उनकी कविताओं के साथ दिए गए चित्र अतुल पडिया की पेंटिंग्स के हैं | अतुल पडिया ने वडोदरा के प्रतिष्ठित एमएस विश्वविद्यालय से विजुअल ऑर्ट में मास्टर्स किया है तथा कई एक प्रमुख जगहों पर अपनी पेंटिंग्स को प्रदर्शित किया है |]
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पंकज की कविताएं समयबोध की कविताएं है। वे जितना समय के साथ चलते है,समय उनके साथ हो लेता है। बस,यही कवि की सफलता है। बिना समय गंवाएं सदैव तत्पर..अपनेपन की सुगन्ध,उस माटी के साथ जो सौंधा भी जाती है और सारे वातावरण को सौंधा देती है। एक भीगापन और ताजगी की कविताए..बिल्कुल अपनेपन के साथ..
ReplyDeleteकृष्णशंकर सोनाने
www.shankarsonane.blogspot.com