Thursday, July 5, 2012

सुन्दर चन्द ठाकुर की दो कविताएँ




















|| दूसरी तरफ़ ||

वहाँ बिखरे हैं चमकीले रंग
काली रात के परदे पर
थिरकती दिखती है एक जगमग दुनिया

हर चीज़ अपनी सुन्दरता में निखरी
इन्द्रसभा में देवताओं का उत्सव हो जैसे
मादक देहगन्ध उड़ाती इठलाती कामुक अप्सराएँ
ऐन्द्रिक आनन्द में आकण्ठ डूबे
उपस्थित हैं वहाँ अपने-अपने साम्राज्यों के महामहिम राजा
नहीं है कोई खौफ़ वहाँ कोई भी चिन्ता
किसी बात का पछतावा कोई भी दुःख नहीं
अय्याशी की एक अँगड़ाई है समूचे दृश्य पर छायी हुई

मंच पर स्थापित यह हमारे ही समय का दृश्य है
बलिदानों और ख़ूनी क्रांतियों से भरे इतिहास की अन्तिम परिणति
हमारी ही सभ्यता का शीर्ष बिन्दु उसका उत्कर्ष
इसके चारों ओर पहरेदार सा फैला है घटाटोप अँधेरा
दूसरी तरफ सुनाई देता है कलपती आत्माओं का शोर
इच्छाओं से बिंधे सीनों की बेसुध सीत्कार
मारकाट हाय-हाय भयंकर प्रलाप

कभी-कभार आकाश से गिरती कोई उल्का जैसे
एक चमक भरी लकीर छोड़ती गुम जाती है
दूसरी तरफ से एक आदमी
कई पीढ़ियों की राख से उठती क्षीण एक चिनगारी सा
पीछे छोड़ता सारा शोर समस्त प्रलाप
अपने भाग्य के ईंधन से भरा द्रुतवेग से
बीच में फैले अन्धकार में क्षणभर चमकता
जगमग दुनिया में कूदकर बुझ जाता है |


 

















|| हमारी दुनिया ||

चिड़िया हमारे लिए तुम कविता थी
उनके लिए छटाँक भर गोश्त
इसीलिए बची रह गई
वे शेरों के शिकार पर निकले
इसलिए छूट गए कुछ हिरण
उनकी तोपों के मुख इस ओर नहीं थे
बचे हुए हैं इसीलिए खेत-खलिहान घरबार हमारे
वे जितना छोड़ते जाते थे
उतने में ही बसाते रहे हम अपना संसार

हमने झेले युद्ध अकाल और भयावह भुखमरी
महामारियों की अँधेरी गुफाओं से रेंगते हुए पार निकले
अपने जर्जर कन्धों पर युगों-युगों से
हमने ही ढोया एक स्वप्नहीन जीवन
कायम कीं परम्पराएँ रची हमीं ने सभ्यताएँ
आलीशान महलों भव्य किलों की नींव रखी
उनके शौर्य-स्तंभों पर नक्काशी करने वाले हम ही थे शिल्पकार
इतिहास में शामिल हैं हमारी कलाओं के अनगिनत ध्वंसाशेष
हमारी चीख़-पुकार के बरक्स वहाँ उनकी कर्कश आवाज़ें हैं
उनकी चुप्पी में निमग्न है हमारे सीनों का विप्लव

उनकी नफ़रत हममें भरती रही और अधिक प्रेम
क्रूरता से जनमे हमारे भीतर मनुष्यता के संस्कार
उन्होंने यन्त्रणाएँ दीं जिन्हें सूली पर लटकाया
हमारी लोककथाओं में अमर हुए वे सारे प्रेमी
उनके एक मसले हुए फूल से खिले अनगिन फूल
एक विचार की हत्या से पैदा हुए कई-कई विचार
एक क्रांति के कुचले सिर से निकलीं हज़ारों क्रांतियाँ
हमने अपने घरों को सजाया-सँवारा
खेतों में नई फसल के गीत गाये
हिरणों की सुन्दरता पर मुग्ध हुए हम

हम मरते थे और पैदा होते जाते थे |   

[पिथौरागढ़ में जनमे और भारतीय सेना में कैप्टन पद से ऐच्छिक सेवानिवृत्त सुन्दर चन्द ठाकुर की कविताओं के साथ यहाँ प्रकाशित चित्र आनंद गोस्वामी की पेंटिंग्स के हैं |]

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