Saturday, March 5, 2011

प्रयाग शुक्ल की कविताएँ

|| प्रेम : एक श्रृंखला ||















(एक)
पर्वत से लुढ़कने,
और फिर चढ़ने,
कहीं अधबीच में
एक चट्टान से उलझी हुई
शाखा को पकड़ने,
और फिर फिसलने के
क्रम में,
किसी फूल की सुगंध में -
कुछ देर विचरने का
अनुभव !

कलरव
चिड़ियों का |
घनी छाया का आश्वासन
अगले कदम पर |
एकदम निर्मल आकाश
में श्वास !















(दो)
दोनों किनारों के बीच
मँझदार
में एक नाव |
शांत निश्चल पल |
जल ही जल
चारों ओर |
धुँधलाता हुआ
हर तरफ का
शोर |
खुलती हुई
खिड़कियाँ
दिशाओं की !















(तीन)
नींद में एक मुख,
ढका हुआ
झीने वसन में,
झीना |
और उसके भीतर के
सपनों की तहें |
कुछ भी न कहें |
उसी अनजाने सुख
में रहें -
भीतर तक मौन !!















(चार)
चपल चंचल एक गति,
जैसा कि हिरण हवा में
अश्व एक,
पैरों को उठाये -
उड़ती चली जाती
चिड़िया
किसी घाटी में |

विद्युत तरंग |

दौड़ते चले आते
इसी ओर
कई-कई रंग |
फिर उनमें से
करता विलग
एक अपने को,
आ रहता सामने !















(पाँच)
एक मिली हुई निधि |
बार बार आ रहती
निकट | हर करवट |

कोई विधि
जिससे थम जाता है जलधि -
और फिर उठता है
ज्वार !!
अपार !

[प्रयाग शुक्ल की कविताओं के साथ दिये गए चित्र मुकेश मिश्र द्वारा खींचे गए फोटो हैं |]

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