Saturday, December 18, 2010
राजेश शर्मा की कविता : अजनबी शहर में
|| एक ||
सीधे चलते हुए दाएँ मुड़ना
फिर सीधे
फिर बाएँ
उस ने ठहर कर बताया
हम ने शुक्रिया अदा किया
ध्यान आया
अपने पुराने शहर में
वर्षों हो गए थे
किसी को शुक्रिया अदा किए
वर्षों हो गए थे किसी को
सहारे की आँखों से देखे
|| दो ||
कितनी अपनी थी वहाँ अजनबीयत भी
कंधे कितने हल्के थे
एतराज और सवाल नहीं थे
सूने पार्कों की औंधती बेंचों
और फुटपाथ की आप-धापी में
कोई चेहरा अपना नहीं था
लेकिन ग़ौर से देखो
तो सभी चेहरे अपने लगने को होते थे
लगभग....लगभग....
अपने शहर में
लगातार अपने ही बारे में सोचते हुए
हम हज़ार-हज़ार मुखौंटों में बँट चुके थे
एक मुखौटा दूसरे को धिक्कारता था
दूसरा तीसरे को
धिक्कार था जीवन अपने पुराने शहर में
अक्सर....अक्सर....
|| तीन ||
लगातार सोचते थे हम
दूसरों के बारे में
अजनबी शहर में
हमारे बारे में कोई नहीं सोचता था
सरकते थे चुपचाप पुराने दिन
शीशे की तरह
बहुत पीछे छूटा कोई दिन तो
हमें छू कर ही गुज़रता था
आंखों पर अक्स डालता हुआ
|| चार ||
बेपहचान के अँधेरे में
रहते थे हम दिन-रात
चलते थे किधर भी
दूर तक चलते थे
चुप रह सकते थे देर तक
अजनबी शहर में हम
न स्याह होते थे न सफ़ेद
न पक्षधर न विद्रोही
चुन सकते थे रास्ता कोई नया
उम्मीद की पहली ईंट रख सकते थे
ख़ालिस मनुष्य बन कर
शुरू कर सकते थे ज़िन्दगी
बिल्कुल शुरू से
|| पाँच ||
हमें मालूम था यह निरर्थक है
हम जानते थे छोटी-सी हँसी
और अधूरी आवाज़
दूर तक नहीं जाती
लेकिन हम उस शहर से आए थे
जहाँ लंबी हँसी और पूरी आवाज़ भी
काम नहीं आई थी
कभी-कभी तो रोकती थी
वह लंबी हँसी
वर्षों से सहेज कर रक्खे
रिश्ते को टोकती थी
|| छह ||
शायद हमें पता था
अधिक रुकना ख़तरनाक होता है
अधिक रुकना पहचान से
आगे बढ़ कर
भरोसे में बदलता है
भरोसा कभी बहुत तकलीफ़ देता है
अधिक रुकना पतली पहचान
और छोटी-सी हँसी का
अतिक्रमण है
अधिक रुकना ख़तरनाक है
क्योंकि तब अजनबी शहर
अजनबी नहीं रहता |
[ राजेश शर्मा की कविताओं के साथ प्रकाशित चित्र अर्चना यादव द्वारा पेन्सिल व एक्रिलिक में बनाई गईं पेंटिंग्स के हैं | एक चित्रकार के रूप में अर्चना ने हाल के वर्षों में अपनी एक खास पहचान बनाई है | भोपाल, ग्वालियर, उज्जैन, इंदौर, जबलपुर, नागपुर, चंडीगढ़, अमृतसर, लखनऊ, हैदराबाद, नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, गोहाटी, गोवा आदि में आयोजित समूह प्रदर्शनियों में तो अपनी पेंटिंग्स को प्रदर्शित कर ही चुकी हैं; साथ ही वह भोपाल, देहरादून व नई दिल्ली में अपनी पेंटिंग्स की एकल प्रदर्शनी भी कर चुकी हैं | अपनी पेंटिंग्स के लिये अर्चना यादव मध्य प्रदेश कला परिषद के प्रतिष्ठित 'रज़ा अवार्ड' के साथ-साथ अन्य कई-कई सम्मान तथा फैलोशिप व स्कॉलरशिप प्राप्त कर चुकीं हैं | ]
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