Tuesday, August 2, 2011

नरेन्द्र जैन की कविताएँ



















|| इस वक्त ||

इस वक्त
पीली सुनहरी रोशनी है
मकान में फड़फड़ाती अकेली

दीवारों पर चीज़ों की आधी
परछाई डोलती है
कमीज़ की दो बाहें
शीशी के आसपास दुबका अंधकार

तस्वीरों की खामोश आकृतियाँ
डूबी अपने निर्जीव संसार में
बाहर मटमैले आसमान में भटके यात्री सा
आधा चाँद
आखिरी नज़र डालता है
सामने फैले अंधकार पर

कैसी है यह दुनिया
जो रोज़ जिए चली जाती है

कैसा है यह मिट्टी का दिया
जो फैलाता है
इस विध्वंस के बीच
पीली सुनहरी रोशनी

आह, आखिरी तिनके का सहारा
कितना मज़बूत है
चट्टान की तरह



















|| यहाँ से आगे ||

यहाँ से आगे
कहाँ जाऊँगा
कुछ पता नहीं

लेकिन जानता हूँ
यहाँ से आगे रास्ता
ज़िंदगी की ओर जाता है

वह
अस्तबल में हो सकती है
हो सकती है खेत की मेड़ पर
मुँह में बच्चे के
मीठे स्तन की मानिन्द
हो सकती है

मृत्यु के ऐन सामने
किलकारी की तरह

सच तो यह है
मैं इस समय इसलिए लिखता हूँ
कि मुझे ज़िंदगी का सरनामा मालूम है
और जानता हूँ
कि
पा ही लूँगा उसे मैं



















|| कहाँ-कहाँ नहीं होता हूँ ||

हवा का हल्का झोंका
मुझे बहाये लिए जाता है

कहीं न होते हुए भी
कहाँ-कहाँ नहीं होता हूँ

दृश्य की सीध में
देखो मुझे

बिजली की कौंध में
हादसों के स्पर्श में
बच्चे की स्मृतियों में देखो मुझे

यह नहीं होगा कि
चट्टान की तरह रहूँ
एक सूखे पत्ते की दिनचर्या
ज़्यादा सहज जान पड़ती है
एक पल हवा के साथ
एक पल आग के साथ

हवा का एक झोंका
बहाये लिए जाता है मुझे



















|| आलू ||

जब कुछ भी नहीं
हुआ करता
आलू ज़रूर होते हैं

जब कुछ भी न होगा
आलू होंगे ज़रूर

स्वाद से ज़्यादा
भूख से ताल्लुक रखते हैं
आलू

टुकड़ा भर आलू हो
तो पानीदार सब्ज़ी बना ही लेती हैं स्त्रियाँ

मिट्टी में दबे आलू
मिट्टी से बाहर आकर
प्रसन्न ही होते हैं

जब
आँच में भूने जाते हैं
भूखा आदमी कह उठता है
शुक्र है खुदा का
यहाँ आलू हैं

[नरेन्द्र जैन की कविताएँ उनके कई संग्रहों में तो संकलित हैं हीं, रूसी भाषा में भी अनुदित होकर प्रकाशित हो चुकी हैं | उन्होंने ख़ुद भी कविताओं, कहानियों व नाट्य-कृतियों के हिंदी अनुवाद खूब किए हैं | दो-ढाई दशक पहले उन्होंने 'अंततः' नाम की पत्रिका का संपादन भी किया था | 1948 में जन्मे नरेन्द्र जैन का आज जन्मदिन है | आधुनिक चित्रकला के प्रति गहरा रुझान रखने वाले नरेन्द्र की यहाँ प्रस्तुत कविताओं के साथ दिए गए चित्र मुक्ता गुप्ता की पेंटिंग्स के हैं | विश्व भारती यूनिवर्सिटी से एमएफए मुक्ता ने रांची, जमशेदपुर, पटना, भुवनेश्वर, धनबाद, ग्वालियर, उज्जैन आदि में आयोजित हुए कला-शिविरों में भाग लिया है तथा इन जगहों के साथ-साथ दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ आदि में आयोजित हुई समूह प्रदर्शनियों में अपने काम को प्रदर्शित किया है | दिल्ली की ललित कला अकादमी की दीर्घा में पिछले करीब एक सप्ताह से चल रही एक समूह प्रदर्शनी में उनकी पेंटिंग्स को देखा जा सकता है | मुक्ता ने अपनी पेंटिंग्स की एक एकल प्रदर्शनी भी की है, और वह कई संस्थाओं से पुरस्कृत व सम्मानित हुई हैं |]

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.

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